Saturday, March 1, 2014

अफसोस

जिंदगी की राह से गुजरे तो महसूस हुआ
जहां जिसे भी छोड़ दिया उसी का अफसोस हुआ

गैरों की बस्ती में तो कोई आस कहां थी
अपनों की महफिल में ही मेरा इम्तिहान हुआ

तकल्लुफ भरी इन गलियों से बच के निकलता हूं
इस शहर ने मुझे और मैंने शहर को पहचान लिया

वक्त ढल जाएगा तो कोई सलाम भी न लेगा
चढ़ते सूरज के दौर मैंने ये खूब जान लिया

- राजकुमार सिंह

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