Tuesday, January 14, 2014

आधा चांद

जिंदगी मुझे आधे चांद सी लगती है
आधे वक्त पूरा होने की ख्वाहिश
आधे वक्त खुद को बचाने की कोशिश
हर वक्त कशमकश सिर्फ कशमकश

मैं अपने हिस्से का आधा चांद लेकर रोज आता हूं छत पर
इस इंतजार में कि कभी तो तुम आओगी
अपने हिस्से का चांद लेकर अपनी छत पर
और हम देखेंगे पूरणमासी की रात

आधे चांद के डोले से हर रात गिरते हैं सपने
जो देखे थे हमने और तुमने
लेकिन जिंदगी हमेशा पालकी में नहीं चलती है
हर डोली कहीं तो उतरती है

मुझे टूटा चांद भाता है
ये लंबा साथ जो निभाता है

2 comments:

  1. wow bhahut badiya bade bhai keep it........

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  2. वो कैसे खुदा तेरे दर पे दे दस्तक
    मुहब्बत को इबादत जो बनाए हुए सा है.

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